एक कम्प्युटर गणनात्मक यन्त्र हो जसमा समस्याको Perpetual रुप बाट भौतिक मात्र को रुप दर्शाई दिन्छ
जस अनुरुप कम्प्युटर अध्यायन गरि रहे प्रणाली को एक मोडल तैयार गर्दछ ।यसअनुसार कम्प्युटर मा सबै प्रचलन समानान्तर तरिका ले हुन्छ,अर्को तर्फ भन्नु पर्दा यस अनुरुप कम्प्युटर मा डाटा बिधुत घचेट्दा देखाई दिन्छ ।जो कि Intensive परन्तु Storage संचयन को लागि पुष्ट हुदैनन ।यसमा सोर या आवाज ले दुषित हुने सम्भावना बनिरहन्छ्न डिजिटल कम्प्युटर मा एक ट्रान्जिस्तर को उपयोग हो तरह अनुरुप कम्प्युटर मज संधारित्र (capacitor ) एक सतत चर प्रतिनिधित्वो गर्न सक्छ यिन का उपयोग मुख्य रुप ले टेक्निकि वा बैज्ञानिक मा हुन्छ ।
५) सूक्ष्म संगणक (Micro computer): एक छोटा अंकीय संगणक, जिसका "केंद्रीय संसाधित इकाई" (CPU-central processing unit), जो सूक्ष्म-संसाधित्र (माइक्रोप्रोसेसर) के डिज़ाइन पर आधारित होता है| यह एक समय में एक ही व्यक्ति द्वारा उपयोग करने केलिए होता है| जिस आधार पर इसे व्यक्तिगत संगणक के नाम से भी जाना जाता है| कभी बड़े संगणकों से कम शक्तिशालीसूक्ष्म-संसाधित्र (microcomputers), अब कुछ साल पहले के लघु-संगणक (minicomputers) तथा महा-संगणक(supercomputers) से कहीं अधिक शक्तिशाली हो चुके हैं| सूक्ष्म-संगणक का प्रभावशाली प्रौद्योगिक तकनिकी, व्यक्तिगत संगणक तथाकार्य-स्थल संगणक के विकास के पीछे प्रमुख रूप से रहा है| इनमें कुंजीपटल, दृश्यपटल तथा माउस, ईत्यादी का उपयोग निर्गम-निवेश(Input/Output) के लिए किया जाता है|
III] अंत:संबंधन पर आधारित :
१) वितरित संगणक तंत्र (Distributed computer system): वितरित संगणक तंत्र में कई स्वायत्त संगणक शामिल होते हैं जो कीएक संगणक संजालक्रम के माध्यम से जुड़े रह कर एक दुसरे से संपर्क स्थापित करते हैं| इस प्रणाली में प्रत्येक कंप्यूटर एक आम लक्ष्यको प्राप्त करने के लिए दूसरे के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं| वितरित अभिकलन संरचना, समवर्ती प्रक्रियाओं के कार्यों मेंसंचार और समन्वय बैठाने की विधि है| एक वितरित प्रणाली में चलने वाले संगणक प्रोग्राम को वितरित प्रोग्राम कहा जाता है, औरवितरित प्रोग्रामिंग ऐसे प्रोग्राम लिखने की प्रक्रिया है।
वितरित अभिकलन, गणनात्मक समस्याओं के समाधान के लिए वितरित प्रणाली का उपयोग करता है. वितरित अभिकलन में, एकसमस्या का विभाजन कई कार्यों में कर, हर एक कार्य को एक निजी कंप्यूटर द्वारा हल किया जाता है| तत्पश्चात सभी हलों को एकत्रितकर निष्कर्ष निकला जाता है|
२) समानांतर संगणक तंत्र (Parallel computer system): समानांतर कंप्यूटर में आमतौर पर, एक ही बहु-प्रक्रमक संगणक केहार्डवेयर उसके बहु-केन्द्रित एवं बहु-प्रचालन तंत्र के साथ समन्वय बनाकर समानता स्थापित करता है| इस कार्य के लिए विशेष प्रकार केसामानांतर प्रचालन तंत्र (Parallel Operating Programs) का उपयोग किया जाता है|
समानांतर संगणक तंत्र , एक समस्या को हल करने के लिए कई संसाधन इकाई का एक ही साथ उपयोग करता है। सवालों को कई स्वतंत्रभागों में बाँट दिया जाता है, जिससे प्रत्येक प्रसंस्करण अपने हिस्से के अभिकलन को दूसरों के साथ ही साथ पूरा कर सकें| समानांतरसंगणक तंत्र , में कई गणना एक साथ हल किए जाते हैं, कई बड़े-बड़े सवालों को छोटे हिस्सों में बाँट कर उन्हें एक ही साथ अलग-अलगहल किया जाता है|
कम्प्युटर पीढियाँ
ZUSE-Z3 एवं ENIAC को कम्प्युटर के विकास का आधार मानें तो तब से लेकर अब तक कम्प्युटर विकासक्रम में कई पड़ाव आए,सर्वाधिक महत्त्वपूर्णता के आधार पर अबतक कंप्यूटर की कुल पाँच पीढियाँ हुई हैं|
विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे अविष्कार कम्प्युटर के प्रगति पथ में बहुत सहयोगी रहे हैं| हर पीढ़ी में कम्प्युटर की तकनीकी एवं कार्यप्रणाली मेंकई आश्चर्यजनक एवं महत्त्वपूर्ण आविष्कार हुए, जिन्होंने कम्प्युटर तकनीकी की काया पलट कर दी| हर पीढ़ी के बाद कम्प्युटर कीआकार-प्रकार, कार्यप्रणाली एवं कार्यक्षमता में सुधार होते गए| कम्प्युटर का विकास दो महत्वपूर्ण भागों में साथ-साथ विकास हुआ, एक तोआतंरिक संरचना एवं हार्डवेयर, और दूसरा सॉफ्टवेर, दोनों एक दुसरे पर निर्भर होने के साथ ही साथ एक दुसरे के पूरक भी हैं| जैसे-जैसेपीढ़ी दर पीढ़ी कम्प्यूटर क्षेत्र में तरक्की हुई उनकी मांग भी बढ़ने लगी और वे पहले की अपेक्षा सस्ते भी होते गए, आज कम्प्युटर घर-घरमें पहुंचनें की वजह उनका किफायती होना ही है|
कम्प्युटर के पीढियों की कुछ आधारभूत जानकारी इस प्रकार है,
अपने समय के ये सर्वाधिक तेज कम्प्यूटर थे| कम्प्युटर की संरचना में कई हजार वक्क्यूम ट्यूब का मुख्य रूपसे इस्तेमाल किया गया|
जिस वजह से इनके द्वारा बिजली की खपत बहुत अधिक होती थी|
कई हजार वक्क्यूम ट्यूब का इस्तेमाल होने के कारण अत्याद्धिक उर्जा उत्पन्न होती थी|
वैक्यूम ट्यूब में उपयोग में लिए जाने वाले नाज़ुक शीशे के तार अधिक उर्जा से शीघ्र ही जल जाते थे| इनकेबाकि कलपुर्जे जल्दी ही ख़राब हो जाते जिससे उन्हें तुंरत बदलना पड़ता था, इनके रख रखाव पर विशेष धयान देना पड़ता था|
जिस वजह से इन्हे जहाँ कहीं स्थापित किया जाता था वहाँ सुचारू रूप से वताकुलन की व्यवस्था करनी पड़ती थी|
RAM के मैमरी लिए विद्युतचुम्बकीय प्रसार (Relay) का उपयोग किया गया|
ये मशीनी भाषा पर निर्भर होते थे, जो निम्नतम स्तर के प्रोग्रामिंग भाषा के निर्देशों के आधार पर कार्य करते थे|
इनके उपयोग के लिए उपयुक्त निर्देश (PROGRAM) लिखना बेहद ही जटील होता था जिस वजह से इनकाव्यावसायिक उपयोग कम होता था|
इनपुट के लिए इनमें पंचकार्ड एवं पेपरटेप का उपयोग किया जाता था, और आउटपुट प्रिंटर के द्वारा प्रिंट कियाजाता था|
इनका आकार बहुत बड़ा होता था, जिस कारण इन्हें बड़े-बड़े कमरों में रखा जाता था, जिस वजह से इनका उत्पादन लागत बहुत ही अधिक था|
ZUSE-Z3, ENIAC, EDVAC, EDSAC, UNIVAK, IBM 701 आदि मशीन प्रमुख रहे|
२) दूसरी पीढ़ी (१९५५ से १९६४) [आधार - ट्रांजिस्टर]:
सन् १९४७ में Bell Laboratories नें 'ट्रांजिस्टर' नामक एक नई switching device का आविष्कार किया जोइस पीढी के लिए वरदान से कम नहीं था|ट्रांजिस्टर Germanium Semiconductor पदार्थ से बनते थे जिससे इनका आकार काफी छोटा होता था, परिणाम स्वरूप वैक्युम ट्यूब की जगह Switching device का उपयोग होने लगा|
ट्रांजिस्टर की स्विचिंग प्रणाली बेहद तीव्र थी, जिससे उनकी कार्यक्षमता वैक्युम ट्यूब के मुकाबले बेहद तीव्रहोती थी|
हालांकि प्रथम पीढी के मुकाबले इनसे कम उर्जा निकलती थी फिर भी ठंडक बनाये रखने के लिए वातानुकूलनकी व्यवस्था अब भी जरुरी था|
इनकी मैमरी में विद्युतचुम्बकीय प्रसार की जगह चुम्बकीय अभ्यंतर का उपयोग हुआ, जिससे निर्देशों कोमैमरी में ही स्थापित करना हुआ| प्रथम पीढी के मुकाबले इनकी संचयन क्षमता कहीं ज्यादा थी|
गूढ़ मशीनी भाषा की जगह इनमें उपयोग के लिए सांकेतिक\असेम्बली भाषा का उपयोग हुआ, जिससे निर्देशोंको शब्दों में दर्ज करना सम्भव हुआ|
COBOL, ALGOL, SNOBOL, FORTRAN जैसे उच्चस्तरीय प्रोगामिंग भाषा तथा क्रमागत प्रचालन तंत्र (Batch Operating System) इसी दौरान अस्तित्व में आए|
इनका उत्पादन लागत कम हुआ, फलस्वरूप इनका व्यावासिक उपयोग औसत दर्जे का होने लगा|
३) तीसरी पीढ़ी (१९६५ से १९७४) [आधार - इंटीग्रेटेड सर्किट-IC]:
यह चरण कम्प्युटर के विकास में बेहद ही रोमांचकारी रहा, अब तक के विकास पथ पर इतनि क्रांति पहले कभी नहीं आयी थी| इंटिग्रेटेड सर्किट IC, जो की कई सारे ट्रांसिस्टर्स, रेसिस्टर्स तथा कैपसीटर्स इन सबको एक ही सिलिकोन चिप पर इकठ्ठे स्थापित कर बनाये गए थे, जिससे की तारों का इस्तेमाल बिलकुल ही ख़त्म हो गया|
परिणामस्वरूप अधिक उर्जा का उत्पन्न होना बहुत ही घट गया, परन्तु वताकुलन की व्यवस्था अब भी जरुरी बना रहा|
लगभग १० इंटिग्रेटेड सर्किटों को सिलिकोन की लगभग ५ मिमी सतह पर इकठ्ठे ही स्थापित करना संभव हुआ, इसलिए IC को "माइक्रोइलेक्ट्रोनिक्स" तकनीकी के नाम से भी जाना जाता है|
इसे "स्माल स्केल इंटीग्रेशन" (SSI) जाना जाता है| आगे जाकर लगभग १०० इंटिग्रेटेड सर्किटों को सिलिकोन चिप की एक ही सतह पर इकठ्ठेही स्थापित करपाना संभव हुआ, इसे मीडियम स्केल इंटीग्रेशन (MSI) जाना जाता है|
तकनीकी सुधारे के चलते इनकी मैमरी की क्षमता पहेले से काफी बढ़ गयी, अब लगभग ४ मेगाबाईट तक पहुँचगयी| वहीँ मग्नेटिक डिस्क की क्षमता भी बढ़कर १०० मेगाबाईट प्रति डिस्क तक हो गयी|
इनपुट के लिए कुंजीपटल का एवं आउटपुट के लिए मॉनिटर का प्रयोग होने लगा|
उच्चस्तरीय प्रोगामिंग भाषा में सुधार एवं उनका मानकीकरण होने से एक कम्प्युटर के लिए लिखे गए प्रोग्राम को दुसरे कम्प्युटर पर स्थापित कर चलाना सम्भव हुआ| FORTRAN IV, COBOL, 68 PL/1 जैसे उच्चस्तरीय प्रोगामिंग भाषा प्रचलन में आये|
इनका आकर प्रथम एवं द्वितीय पीढी के कम्प्युटर की अपेक्षा काफी छोटा हो गया|
जिससे मेनफ्रेम कम्प्युटर का व्यावासिक उत्पादन बेहद आसान हो गया और इनका प्रचलन भी बढ़ने लगा| इनके लागत में भी काफी कमी हुयी| जिसके परिणाम स्वरूप ये पहले के मुकाबले बेहद सस्ते हुए|
माइक्रोप्रोसेसर के निर्माण से कम्प्युटर युग का कायापलट इसी दौर में शुरू हुआ, MSI सर्किट का रूपांतर LSI एवं VLSI सर्किट में हुआ जिसमे लगभग ५०००० ट्रांसिस्टर एक चिप पर इकठ्ठे स्थापित हुए|
तृतीय पीढ़ी के कम्प्युटर के मुकाबले इनकी विद्युत खपत बेहद घट गयी| एवं इनसे उत्पन्न होने वाली उर्जा भी कम हुयी| इस दौर में वताकुलन का इस्तेमाल अनिवार्य नहीं रहा|
इनके मैमरी में चुम्बकीय अभ्यंतर की जगह सेमीकंडक्टर मैमरी कण प्रयोग होने लगा, जिससे इनकी क्षमता में बहुत वृद्धि हुयी| हार्ड डिस्क की क्षमता लगभग १ GB से लेकर १०० GB तक बढ़ गयी|
माइक्रोप्रोसेसर तथा मैमरी के अपार क्षमता के चलते, इस दौर के कम्प्युटर की कार्य क्षमता बेहद ही तीव्र हो गयी|
इस दौर में C भाषा चलन में आयी जो आगे चलकर C ++ हुयी, इनका उपयोग मुख्यरूप से होने लगा| प्रचालन तंत्र (Operating System) में भी काफी सुधार हुए, UNIX, MS DOS, apple's OS, Windows तथा Linux इसी दौर से में चलन में आये|
कम्प्युटर नेटवर्क ने कम्प्युटर के सभी संसाधनों को एक दुसरे से साझा करने की सुविधा प्रदान की जिससे एक कम्प्युटर से दुसरे कम्प्युटर के बिच जानकारियों का आदान-प्रदान संभव हुआ|
पर्सनल कम्प्युटर तथा पोर्टेबल कम्प्युटर इसी दौर से चलन में आया, जो की आकार में पिछली पीढी के कम्प्युटर से कहीं अधिक छोटा, परन्तु कार्यशक्ति में उनसे कहीं ज्यादा आगे था|
इनका उत्पादन लागत बेहद ही कम हो गया जिससे इनकी पहुँच आम लोगों तक संभव हुयी|
५) पांचवीं पीढ़ी (१९९० से अब तक [आधार: ULSI]):
माइक्रोप्रोसेसर की संरचना में VLSI की जगह UVLSI चिप का प्रयोग होने लगा| माइक्रोप्रोसेसर की क्षमता में आश्चर्यजनक रूप से ईजाफा हुआ, यहाँ तक की ४ से ८ माइक्रोप्रोसेसर एक साथ एक ही चिप में स्थापित होने लगे, जीससे ये अपार शक्तिशाली हो गए हैं|
इनकी मेमरी की क्षमता में भी खूब ईजाफा हुआ, जो अब तक बढ़कर ४ GB से भी ज्यादा तक हो गयी है| हार्ड डिस्क की क्षमता २ टेरा बाईट से भी कहीं ज्यादा तक पहुच गयी है|
इस दौर में मेनफ्रेम कम्प्युटर पहले के दौर के मेनफ्रेम कम्प्युटर से कई गुना ज्यादा तेज एवं क्षमतावान हो गए|
पोर्टेबल कम्प्युटर का आकर पहलेसे भी छोटा हो गया जिससे उन्हें आसानी से कहीं भी लाया लेजाया जाने लागा| इनकी कार्य क्षमता पहले से भी बढ़ गयी|
इन्टरनेट ने कम्प्युटर की दुनिया में क्रांति ला दिया| आज सारा विश्व मानों जैसे एक छोटे से कम्प्युटर में समा सा गया है| विश्वजाल (World Wide Web) के जरिये संदेशों एवं जानकारी का आदान-प्रदान बेहद ही आसान हो गया, चंद सेकंड्स में ही दुनिया के किसी भी छोर से संपर्क साधना सम्भव हो सका|
कम्प्युटर की उत्पादन लागत में भारी कमी आने के फलस्वरूप कम्प्युटर की पहुँच घर-घर तक होने लगी है| इनका उपोग हर क्षेत्र में होंने लगा|
इस पीढ़ी का विकासक्रम अभी भी चल रहा है और कम्प्युटर जगत नए-नए आयाम को छूने की ओर अब भी अग्रसर है|
इस पीढ़ी के कम्प्युटर ने अपना आकर बेहद ही कम कर लिया है, पाल्म् टॉप, मोबाइल तथा हैण्डहेल्ड जैसे उपकरण तो अब हमारे हथेली पर समाने लगे है|
कंप्यूटर - उत्पत्ति एवं क्रमागत उन्नति
आप अपने पूरे जीवन काल में ऐसे कितने आविष्कार के बारे में सोच सकते हैं, जो हमारे समाज में सब कुछ बदल कर रख दे? कंप्यूटर ने चंद दशकों में ही पुरी दुनिया के सोचने-समझने, कार्य करने और यहाँ तक की रहन-सहन का तरीका भी बदल के रख दिया| इसे कंप्यूटर क्रांति माना जाने लगा| परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता की कंप्यूटर की खोज इसी सदी में हुई, अंकों एवं गणन का उपयोगमानवजाति के विकास क्रम के शुरुवात से ही रहा है| शुरुवाती दौर में, हाथों की उँगलियों का उपयोग करना, मृत प्राणियों के हड्डी का प्रयोग करना, रेखाएंखींचना, चिन्ह बनाना इत्यादि का उपयोग होता था
अब तक ज्ञात श्रोतों के आधार पर, शुन्य के इस्तेमाल का सर्वप्रथम उल्लेख हिंदुस्तान के प्राचीन खगोलशास्त्री एवं गणितज्ञ आर्यभठ्ठ द्वारा रचित गणितीय खगोलशास्त्र ग्रंथ आर्यभठ्ठीय के संख्या प्रणाली में, शून्य तथा उसे दर्शाने का विशिष्ट संकेत सम्मिलित किया था, तभीसे से संख्याओं को शब्दों में प्रदर्शित करने के चलन शुरू हुआ|
भारतीय लेखक पिंगला (200 ई.पू.) नें छंद शास्त्र का वर्णन करने के लिए, उन्नत गणितीय प्रणाली विकसित किया और द्विआधारिय अंक प्रणाली (०,१)(Binary Number System) का सर्वप्रथम ज्ञात विवरण प्रस्तुत किया| इसी जादुई अंक अर्थात अंक ० तथा अंक १ का प्रयोग कम्प्यूटर की संरचना में प्रमुख रूप से किया गया|
"कंप्यूटर" शब्द का चलन आधुनिक कंप्यूटर के अस्तित्व में आने के बहुत पहले से ही होता रहा है, पहले जटील गणनाओं को हल करने के लिए उपयोग होने वाले अभियांत्रिकी मशीनों को चलाने वाले विशेषज्ञ को "कंप्यूटर" कहा जाता था| ऐसे जटील अंकगणितीय सवाल, जिन्हें हल करना बेहद मुश्किल ही नहीं अपितु अत्यधिक समय लेने वाला भी होता था, को हल करनें के लिए मशीनों का आविष्कार हुआ, और समय के साथ-साथ उनमें कई बदलाव व सुधार होते गए| विज्ञान की खोज और उसमें हुए कई महत्त्वपूर्ण आविष्कारों ने कंप्यूटर के आधुनिककरण में खूब योगदान दिया है| गणन यन्त्र विशेषज्ञों से आगे बढ़कर अभियांत्रिक मशीनों का बनना, विद्युतचालित यंत्रों का आविष्कार और फिर आधुनिक कंप्यूटर का स्वरूप मिलना, ये कंप्यूटर आविष्कार के क्रमागत उन्नति पथ हैं|
३००० ई.पु. में "ABACUS" नामक गणना करने वाले यन्त्र का उल्लेख किया जाता है, ABACUS में कई छडें होती हैं जिनमें कुछ गोले होते हैं जिनके जरिये जोड़ व घटाना करते थे, परन्तु इनसे गुणन या विभाजन नहीं किया जा सकता था|
६००वीं सदी से लेकर 1970 तक का दशक कंप्यूटर के विकास में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण रहा है|
*१६२२वीं ईसवी में विलियम औघ्त्रेड ने "स्लाइड रुल" का ईजाद किया|
*१६४२वीं ईसवी में ब्लैसे पास्कल नें पास्कलिन नमक यन्त्र बनाया जिससे जोड़-घटना किया जा सकता था|
*१८२२ ईसवी में चार्ल्स बैबेज नें "डिफरेंशिअल इंजन" का आविष्कार किया तथा १८३७ ईसवी में "एनालिटिकल इंजीन " का अविष्कार किया जो कीधनाभाव के कारण पुरा न हो सका, कहा जाता है की तभी से आधुनिक कंप्यूटर की शुरुवात हुई| ईसलिए चार्ल्स बैबेज को "कंप्यूटर का जनक " भी कहाजाता है|
* १९४१ ईसवी में "कोनार्ड जुसे" नें zuse-Z3 का निर्माण किया, जो की द्विआधारी अंकगणितीय (Binary Arithmetic) एवं चल बिन्दु अंकगणितीय(Floating point Arithmetic) संरचना पर आधारित सर्वप्रथम विद्युतीयकंप्यूटर था|
बाह्य श्रोत: लेबल: कम्प्युटर
No comments:
Post a Comment